ब्लोगिंग जगत के पाठकों को रचना गौड़ भारती का नमस्कार

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रविवार, 7 अप्रैल 2013

आज ऐपन से लिखूँगी ,मैं अपनी तक़दीर
इसी देश की बेटी हूँ मैं, इसकी ही ज़ागीर 
ज़न्म से पूर्व ,म्रत्यु  से खेली,मैंने आँख मिचौली 
माँ की गोद मुश्किल से मिली,आस्थाओं  की होली 
मुंह छिपाए घर से निकली ,संग में सखी न सहेली 
नयनो में इच्छाओं को भरकर,कामनाओं की होली 
नुक्कड़ जब मिले पुलसिया, तार तार हुई साड़ी 
विश्वास की सुलगती शैया पर, वेदनाओं की होली 
हर बेटी अस्मत  से अपनी, हो रही फ़कीर 
सांप निकलते जा रहे,  अब पीट रहे हैं लकीर 
डर के साये मिटा दिए , हाथों  मे ले कटार
लाल मिर्च है हाथ मैं,आ फागुनी बयार   

शनिवार, 27 नवंबर 2010

अधूरी सी ..................
विक्षिप्त सी सीमा रेखा,
विलोम सभ्यता की प्रतीक
सी लगती है ।
ऊंची नीची पहाड़ियों पर,
आदमी और आदमखोरों की
लुका छुपी में
जर्जरता से बेफिक्र,
त्रासदी की बर्बरता अधूरी लगती है ।
दूसरों की पीड़ा वो,
क्यों कर सहें जब ,
स्वंय ही पीड़ित दिखते हों,
ऐसे आशातीतों की
हर बात अधूरी लगती है।
रंज से भीगे रुमालों से
जब मुंह वो पौंछा करते हैं ,
खुद इसकी खबर इन्हें नहीं
एक बूंद खून की गिरने पर
चहुं ओर तबाही मचती है ।
कटाक्ष नजरों के घेरे से,
जब अंगारों की धुंधकार निकलती है,
वहीं दबी -2 सी चिनगारी
जवालामुखी सी लगती है ।

रविवार, 12 सितंबर 2010

हरी पीली पत्तियां

देखी हैं डालियों पर झूमती हुईं पत्तियां
कहीं हल्की तो कहीं गहरी होती पत्तियां
पीले जर्द़ पत्तों की डाह सहतीं पत्तियां
मगर पीले पत्तों का बेजुबान दुख
हवा से थर्रायी, थकीं, ज़मीन ढकती पत्तियां
उम्र के आखिरी पड़ाव से जूझती
कसमसाती पीली पत्तियां
पेड़ से गिरीं, अपने ही आशियाने की
तुलसी बनीं पत्तियां
हरी पत्तियों में शामिल होने को बेचैन
राह तकतीं पत्तियां
कुछ राहगुज़रों के पैरों रौंदी
आप-बीती दोहराती पत्तियां
कहने को दोनों ही बेजुबान मगर
शारीरिक भाषा में अपनी पीड़ा बताती
और बताती मस्तियां
डाल से जुड़ने से हर्षयुक्त
आन्दोलित हरी पत्तियां
वहीं अतीत की यादों से जर्द पीली पत्तियां
घर में कूड़ा लगतीं, बुहारी जातीं पीली पत्तियां
लेकिन मृदा में दबी खाद में तब्दील उत्सर्गी पत्तियां
खुदा हमें डाल से वहीं गिराना
जहां हम भी बन जाएं उत्सर्गी पत्तियां

रविवार, 22 अगस्त 2010

सावन का महीना


आज वो दरिया ही बेईमानी कर गया
ज़ज़्बातों का पानी जिसमें बहता था
भिगोने के लिए जिसे एक चुल्लू न मिला
साथी चला गया और सावन का महीना था


दुनिया-----
सर पर आस्मां रहे न रहे
पैरों तले ज़मीं की जरूरत नहीं हमें
हम तो उस दुनिया में चले गए हैं
अब सांस रहे न रहे इसका ग़म नहीं हमें

रविवार, 15 अगस्त 2010

तिरंगे की लाज

Myspace Indian Flag Graphics Independencec Day Clipart




नाज़ करें हम तुम पर जितना
ओ देश के नौजवान
तिरंगे की आन हो तुम
तिरंगे की जान हो तुम
कलाई का एक चीर तुम्हारे हाथ है
बहन का वो प्यार सदा तुम्हारे साथ है
इस चीर की लाज बचाना है
धर वापस जीतकर तुम्हें आना है
हर मां बहन की आंख में यही एक आस है
मेरे प्यारे नौजवान जीत या कफन तुमहारे साथ है
मॉं की दुआएं बेकार न हो
जिस जमीन के जर्रे जर्रे को
शहीदों ने खून से सींचा हो
उस पर दुश्मन का अधिकार न हो
जय हिन्द जय भारत
भारत देश के स्वतंत्र देशवासियों को मेरा नमन !

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010


प्रियतम

मधु रंजित अधरों पर प्रियतम
आया नाम तुम्हारा प्रियतम
प्रतिबिम्बित नयनों के दर्पण
तुमको किया हमने मन अर्पण
बिन दुल्हन के सूनी देहली
प्रियतम बिना न आए नवेली
कुम कुम बरसा आयी शाम
जिन्दग़ी कर दी तुम्हारे नाम
मन में ऐसे बसे चितचोर
कर गए हमको भाव विभोर
क्षण-क्षण आया ऐसा आलम
होठों से निकला प्रियतम! प्रियतम!

वैलेन्टाइन दिवस पर मेरी सभी को शुभकामनाएँ


शनिवार, 23 जनवरी 2010

धोबीघाट



















वो मेरा घर और
घर के पीछे का धोबीघाट
श श श से कपड़े पछीटते
धोबियों की सीटियों की आवाज़
सर्दी, गर्मी, बारिश में
अधोतन पानी में उतर
पत्थरों पर करते पछाट पछाट
वो धूप से झुलसी चमड़ी
पानी में पड़ी पड़ी धारीदार
कपड़े हैं इनमें संरक्षकों
के समाज सेवियों के,कार्यकरताओं के
कुछ घूसखोर कर्मचारियों के
किसी नेता के, किसी के चमचों के
इनसे निकलता सतरंगी पानी
अलग-अलग धब्बों की कहानी
किसी कपड़े से खून का धब्बा
घूस की चाश्नी का धब्बा तो
चमचागिरी की चाय का धब्बा
लालफीते की स्याही का धब्बा
सस्पेन्डेड अफसरों के पीलेपन का
मंत्रियों की टोपियों के ढीलेपन का
हुआ दाग दगीला इससे निर्मल पानी
गंदलाते नाले, पोखरों की कहानी
गंदे पानी के गड्ढों में फिर कोई
चुनाव की गाड़ी कुदाएगा
कपड़ों पर छींटें उड़ाएगा
फिर सफेदपोशों को दागी बनाएगा
और बेचारा घाट पछाट पछाट की
आवाज़ों से बस गुंजायमान होता जाएगा

बुधवार, 16 दिसंबर 2009

कैसे आएगी खुशहाली ?

















पांच लोगों का जमघट
तीन पत्ती का खेल
धुआं उगलती मोटरें
हाटों में रेलमपेल
झौंपड़ी में घुस गई
फैशन की चाल
माथा टीकी लाली
गंवारन का हाल
सूखी मटकी खाली
टीन कनस्तर खाली
करने बातें बैठें हैं
कैसे आएगी, गांव में खुशहाली?
तू जीता,मैं जीता
चल अब दस की पत्ती डाल
चाय की थड़ियां और
कट चाय की गुहार
सरकार ने क्या किया
इस कोठे का धान उसमें भरा
खैनी फांकी, चूना झटका
घर से निकली सर पर मटका
हैण्डपंप पर खुसर फुसर
चरी मटकी का साज
गोरियों का इठलाना
खिलखिलाहट का राग
फिकरेबाज़ी छींटाकशी
दनदना गाली निकली
घर अंदर से बुहार लें
कचरा रस्ते पर डाल
कीचड़ से गलियां भरी
और चबूतरे साफ
कैसे आएगी गांव में खुशहाली?
तू जीता, मैं जीता
चल दस की पत्ती डाल
कीचड़ लदे रास्ते
मक्खियों की भनभनाल
माथे पर शिकन नहीं
खटिया नीम तले डाल
दातुन,मंजन,खैनी,गुटखा
चार पहर डाक्टर का नुस्खा
फिल्मों में हीरो को देखा
छोरा बना हीरो सरीखा
सफेद पतलून चमेली का तेल
जिधर देखो तीन पत्ती का खेल

शनिवार, 28 नवंबर 2009

समरूपताएं


तितलियों और लड़कियों की
अजीब समरूपताएं
अलियों और लड़कों को
पीछे-पीछे भगाएं
इन्द्रधनुष रंगों से सजें
छेड़ने की इन्हें सजाएं
रंग छोड़ें, रंग बदलें
रंगेहाथों पकड़वाएं
इठलाती उड़ती फिरें
मन ही मन लुभाएं
पंख पसारे उड़ती जाएं
अलियों को तड़पाएं
दूर रहें हाथ न आएं
यही इनकी विदू्रपताएं

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

‘बेटा’ एक शब्द















‘बेटा’शब्द एक मार्मिक अहसास
मां के अन्तर्मन का विश्वास है
आत्मा से आत्मा का बंधन
बेटे से मां बाप का यही नाता है
सौ जन्मों से अधिक ममता से
मां का हृदय जब बेटा बुलाता है
कर्ज और फर्ज से बंधा जन्म ले
बेटा जब मां के आंचल में आता है
मां के दूध का कर्ज, वंशबेल का फर्ज
परवरिश व संस्कारों से ही चुकाता है
वहन करता प्यार, विश्वास, जिम्मेदारी
बाप के कंधे से कंधा वो मिलाता है
जब कोई बाप बेटे का हमराज बनता है
तभी बेटे का मूल, पोते का ब्याज पाता है
भाग्यवान है जिसने जीवन में बेटे का कंधा पाया
परलोक के लिए जिसके बेटे ने अपना कंधा लगाया